बांदा में बालू माफियाओं का खूनी तांडव: नदियों की तबाही, प्रशासन की चुप्पी, और राजनीतिक संरक्षण का काला खेल( केन-यमुना का सीना छलनी, एनजीटी नियमों की धज्जियां, मासूमों की जान पर बन आई, फिर भी माफियाओं के हौसले बुलंद)

बांदा में बालू माफियाओं का खूनी तांडव: नदियों की तबाही, प्रशासन की चुप्पी, और राजनीतिक संरक्षण का काला खेल
( केन-यमुना का सीना छलनी, एनजीटी नियमों की धज्जियां, मासूमों की जान पर बन आई, फिर भी माफियाओं के हौसले बुलंद)

बांदा, उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद में केन और यमुना जैसी जीवनदायिनी नदियां आज बालू माफियाओं के लालच की भेंट चढ़ रही हैं। अक्टूबर 2024 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के नियमों के साथ बालू खनन के अधिकार पत्र सौंपे थे, लेकिन यह केवल एक औपचारिकता साबित हुई। बालू माफियाओं ने नियम-कानून को रौंदते हुए भारी मशीनों से नदियों का सीना छलनी करना शुरू कर दिया। अवैध खनन का यह तांडव न केवल पर्यावरण को तहस-नहस कर रहा है, बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका और जिंदगियों को भी निगल रहा है। प्रशासन की संदिग्ध चुप्पी और कथित राजनीतिक संरक्षण ने माफियाओं के हौसले और बुलंद कर दिए हैं।एनजीटी नियमों की खुलेआम उड़ रही धज्जियां
जबकि एनजीटी की गाइडलाइंस स्पष्ट हैं:नदियों में तीन फीट से अधिक गहरा गड्ढा खोदना प्रतिबंधित है।मशीनों का उपयोग सीमित और नियंत्रित होना चाहिए।सूर्यास्त के बाद खनन पूरी तरह बंद होना चाहिए।नदी की धारा को अवरुद्ध करना या कच्चे पुल बनाना गैरकानूनी है।लेकिन बांदा में ये नियम केवल कागजों तक सीमित हैं। बालू माफिया रात-दिन जेसीबी, पोकलैंड और अन्य भारी मशीनों से 30-50 फीट गहरे गड्ढे खोद रहे हैं। केन, यमुना, बागै और रंज जैसी नदियों में धारा अवरुद्ध कर कच्चे पुल बनाए जा रहे हैं, जिससे नदियों का प्राकृतिक स्वरूप नष्ट हो रहा है। इन गहरे गड्ढों ने कई जिंदगियां छीन ली हैं। एक मासूम बच्ची, खुशबू, अपने परिवार की आंखों का तारा, ऐसे ही तालाबनुमा गड्ढे में डूबकर असमय काल के गाल में समा गई। उसका भविष्य, उसके सपने, सब कुछ माफियाओं की लालच की भेंट चढ़ गया।
स्थानीय विरोध का दमन, पत्रकारों पर हमलेजब स्थानीय लोग इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो उनका दमन किया जाता है। धनबल और बाहुबल के दम पर उनकी आवाज को कुचलने की कोशिश होती है। विगत वर्षों नरैनी तहसील के पाणादेव में खनन कार्य के दौरान एक मजदूर की मौत हो गई। परिजनों ने शव रखकर बांदा नरैनी मुख्य मार्ग के पनगरा मे सड़क जाम की, तब जाकर ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई हुई।  शिकायती पत्र जांच के नाम पर टेबल-दर-टेबल भटकते रहते हैं, लेकिन माफियाओं की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई होती है। इसका जीता-जागता उदाहरण है लहुरेटा और बरियारी में समाचार कवरेज करने गए पत्रकारों पर दर्ज मुकदमे, जिन्हें जेल तक जाना पड़ा। यह स्पष्ट है कि माफियाओं के खिलाफ आवाज उठाने वालों को डराने-धमकाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।बरियारी और मरौली खदान: माफियाओं का अड्डा
बरियारी और मरौली खदानों का हाल सबसे बदतर है। यहां संजीव गुप्ता जैसे खनन संचालकों पर लाखों-करोड़ों रुपये का जुर्माना लगाया गया, लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह जुर्माना केवल दिखावा है। जनचर्चाओं के अनुसार, सत्ताधारी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का खुला संरक्षण होने के कारण जिला प्रशासन और खनिज विभाग इन खदानों पर कार्रवाई करने से कतराता है। *जनता सवाल उठा रही है*:बरियारी और मरौली खदान संचालकों ने कितना जुर्माना जमा किया?क्या राजनीतिक दबाव में यह जुर्माना माफ कर दिया गया?प्रशासन और खनिज विभाग इस पर जवाब क्यों नहीं दे रहे?मटौंध के मरौली गांव में ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को शिकायत दी कि ठेकेदारों ने बंदूक दिखाकर उनके खेतों से 30-35 फीट गहरी बालू निकाली, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह स्पष्ट है कि प्रशासन तभी सक्रिय होता है, जब मामला हाईकोर्ट या मीडिया के जरिए सुर्खियों में आता है।प्रशासन और पुलिस की काली करतूतबांदा में बालू खनन का यह काला खेल प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। बीते साल सितंबर में तत्कालीन एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह को बालू माफियाओं से गठजोड़ के आरोप में निलंबित किया गया था। डीएम आंनद कुमार को हटा दिया गया था। गिरवां थाना प्रभारी सहित तीन कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था, क्योंकि मध्य प्रदेश की सीमा से मौरंग को बांदा में प्रवेश करने और अवैध खनन में संलिप्तता के आरोप थे। लेकिन इसके बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।आज भी मध्य प्रदेश से गिरवां के रास्ते अवैध खनन और ओवरलोड परिवहन जारी है। केन नदी का पुल इस ओवरलोडिंग से खतरे में है, लेकिन पुलिस की मिलीभगत से यह सिलसिला थम नहीं रहा। बांदा-नरैनी मुख्य मार्ग पर गिरवां में हर दिन भीषण जाम की स्थिति बन रही है, जिसका खामियाजा आम जनता भुगत रही है। हाल ही में पथरी खदान के मुनीम ने जिलाधिकारी जे. रिभा को शिकायती पत्र देकर खनिज इंस्पेक्टर पर 10 लाख रुपये महीने की उगाही का आरोप लगाया। ये शिकायतें एक ही निष्कर्ष की ओर इशारा करती हैं: पुलिस, खनिज विभाग और राजनेताओं का अनैतिक गठजोड़ नदियों को तबाह कर रहा है।राजनीतिक संरक्षण: माफियाओं की ढालबांदा में बालू माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण मिलने की बात जनचर्चाओं में आम है। खनन माफिया और सत्ताधारी नेताओं के बीच कथित गठजोड़ ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2016 में अवैध खनन पर सीबीआई जांच के आदेश दिए थे, लेकिन माफियाओं पर शिकंजा कसने में कोई खास प्रगति नहीं हुई। समाजवादी और बसपा सरकारों के समय भी खनन माफियाओं को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे, और वर्तमान सरकार में भी यह सिलसिला थम नहीं रहा।नदियों का अस्तित्व खतरे में, बुंदेलखंड की तबाहीकेन और यमुना जैसी नदियां बांदा की जीवनरेखा हैं, लेकिन अवैध खनन ने इनके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। गहरे गड्ढों और धारा अवरुद्ध होने से नदियों का जलस्तर घट रहा है, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा। पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है, जलीय जीवों का जीवन खतरे में है, और नदियों के किनारे बसे गांवों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। बुंदेलखंड पहले ही जल संकट से जूझ रहा है, और अब नदियों का यह विनाश स्थिति को और बदतर बना रहा है।जनता की मांग: अब बस, बहुत हुआ!बांदा की जनता अब जवाब चाहती है। प्रशासन बताए:बरियारी और मरौली खदानों पर लगाए गए जुर्माने का क्या हुआ?क्या माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है?क्यों पीड़ितों की शिकायतों पर जांच होती है, लेकिन माफियाओं की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई?क्यों नदियों को लूटने वालों पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा?जनता की मांग है:बरियारी और मरौली खदानों पर तत्काल कार्रवाई हो।एनजीटी नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाए।खनन माफियाओं और उनके राजनीतिक संरक्षकों के खिलाफ सीबीआई जांच हो।पीड़ितों को न्याय और मुआवजा दिया जाए।नदियों को बचाने का आखिरी मौकाबांदा में बालू खनन का यह काला कारोबार नदियों, पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के लिए अभिशाप बन चुका है। प्रशासन की चुप्पी, पुलिस की मिलीभगत और राजनीतिक संरक्षण ने माफियाओं के हौसले बुलंद कर दिए हैं। अगर समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो केन और यमुना जैसी नदियां इतिहास बन जाएंगी, और बांदा का जनजीवन संकट में पड़ जाएगा। अब वक्त है कि प्रशासन जागे, माफियाओं पर शिकंजा कसे और जनता को न्याय दे। यह नदियों को बचाने का आखिरी मौका है, वरना आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।

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